Budhani (बुढनी) Tharu language

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Description

From the backcover

‘काहे अट्रा ढेउर भाट पकइठो डाइ ?’ बुढनी एक बिहान पुंछल । ‘जब टोहार बाबा अइहिँ, उ महाभुखाइल रहिहिँ, उ डोब्बर खइहिँ.. डाइ कहलिस । मने रात बिट्जाए ओ बिहान होजाए बाबा घुमके नै आइ । इ खाना फेन ढिकाइ । जब जब बुढनी कौरा मुँहेम डारे, बुढनीक सौं बर्हटि जाइस् । खाइबेर हर कौरक मिठास, बाबक सोचसे फिक्कल हुजाइस् । बाहरके डुनियाँ ओकर घरेम सुखढाम खल्भल्वा डेले रहे । बुढनी बाबक मैंयाँहे बल्गरके सवाँरल । बन्वँक डुनियाँ फेन उ म ढरल । यहाँ जिन्गि बहुट फराक बा । गोबरेम बैठना किरा, पानी पौँहूना जलजिव, लुग्गा सिए असक पटिया सिना चिरै, आपन घर बनाइक लाग छोटमोट चिम्टा ओ बरवार जिउ रहल हाँठि, बिच्चेम झुल्ना टरुल, भिजल पनिहाँ माटिमसे निकल बाँस, लिहुरल कोच्यक साग ओ फेंचार फुलल गडौलिक फुला यि सक्कु यहाँ जिट्टि बटाँ ओ सक्कुजे आपन आपन जाट बँचैले बटाँ । कबु अउरे जन्हन खैना टे कबु अउरेजे ओइन खैना । जिना ओ मुँना रिट चलल बा ।

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